निकल गई है घर से,
बाज़ार मे, गली में
मुहल्ले में, चौराहे पर,
वो दूसरे की बेटी जिसपर
सभी की नज़र,
चाहे जैसी भी हो
बुरी या बेहतर,
उसके निहारते कपड़े
उसके बिलाउज के स्तर,
उसके घुटनों के कवर
उसकी दिखती हुयी कमर,
उसके नखरे, उसकी अदा
उसकी चढ़ती हुई उमर,
वो आती हुई इधर
वो निकलती हुई किधर,
वो किसके गई थी घर
उसकी जींस उसकी टॉप
उसकी गोलगप्पे की चाहत
उसके होंठो की रंगत,
वो दूसरे की बेटी
वो खुली हुई तिजोरी
वो चलती फिरती बाज़ार!
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