Sunday 24 April 2022

Echo–Chamber

मै खुद ही बोलता है,
मै खुद ही खुद की
आवाज़ सुनता है,
मै खुद को सुनकर
घबराता है,
मै खुद को सुनकर,
डर जाता है,

मै खुद ही खुद की
किताब लिखकर
खुद को पढ़कर
सुनाता है,
पात्रा को सुनाता है
उन्हें उनकी lines
याद कराता है,
बोलने को कहता है,
और फिर उनका
जवाब देता है,
जवाब को सही और
गलत कहता है,

मै climax ढूंढता है
आज के लिए
कल फिर उसे 
बदलने के लिए
उसी आधार पर
किरदारों को नया
जामा पहनाने के लिए,

Climax मेरे मै का 
Echo–chamber मे
घूमती हुई ये आवाज़,
ये आवाज़ जो 
किसी और मुंह से
निकल कर उनके
वजूद को पिरोती है
और फिर
उलाहने देती है,

मै प्रफुल्लित और होता 
गूंज की आवाज़ मे
अट्टहास करता
और फिर कुछ और
जुटाने मे लग जाता,
खोखली दुनिया की
आकाशवाणी सुनकर
सुदर्शन चक्र जैसा
जीवन गोल–गोल घुमाता,

मै राम–राम, महावीर की 
गाथा जब गाता,
तो मैं को राम का echo
तब समझ आता,
मै खुद echo–chamber
का हिस्सा बनकर
सुखी हो जाता,
मै बुद्ध हो जाता,
मै फिर फिर गाता
"बुद्धम् शरणम् गच्छामि:"

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