तुम स्कूल जाकर क्या करोगी?
मुंह ढका हुआ
तन ढका हुआ,
पेट तुम्हारा
फुला हुआ है,
आंखे तुम्हारी
देख रही हैं,
कान तो सुनने
के काबिल हैं,
ज़ुबां तुम्हारी
खा लेती हैं,
तुम मुंह से बोल के क्या कर लोगी?
खाना बनाना
आता ही है,
खुश भी मुझको
कर लेती हो,
घर के चार दिवाल
के पीछे
हंसना गाना
कर लेती हो,
हाथ–गोड़ से
चल ही लेती हो !
कलम चला कर क्या कर लोगी?
चौराहे तक
जा सकती हो,
मोल–भाव भी
कर सकती हो,
हुश्न–जमाल की
रंगत पर तुम,
लाली खुद से
लगा सकती हो,
कह दो जो है
मर्द से कहना,
तुम संसद जाकर क्या कह दोगी?
कौन तुम्हे महफूज़ रखेगा
चोरों–डाकु–गुंडों से,
कौन चरित्र का परचम देगा
अग्नि–दाह से निस्बत से,
चारो तरफ हमीं फैले है
हमे ज्ञान अपनो का,
हममे बसी है क्रूर आत्मा
जो बस रची है हिंसा से,
हमको हंसा–रुलाकर
तुम अपने जैसा ही कर दोगी,
खान अब्दुल गफ्फार खान के जैसा
हमे बना कर क्या कर लोगी?
बामियान के बुद्ध के बूत लगाकर
तुम तालिबान को क्या कर दोगी?
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