जो अधनंगे
घूम रहें हैं घाटों पर
इनको गुम होने का
नहीं है डर
घाट पर ही है
इनका घर
ये हंसते हैं,खेलते हैं
और भटकते हैं इधर–उधर,
ये खाते हैं मिट्टी,
लोटते हैं ज़मीन पर
ये कर भी देते हैं,
इधर–उधर,तितर–बितर,
कौन साफ करता है इनको,
कहां है इनका साफ–बिस्तर
पैर पोछकर बोरे मे
चढ़ जातें हों ये जिनपर,
वह गया ढूंढने था रोटी,
जो उठा लाया paracetamol
कूड़े मे हाथ अंदर कर,
रंग–बिरंगे,लाल–नीले,
छोटे–छोटे, हरे बटन
पानी खोज के पी लेगा
और बढ़ जायेगा AMR,
बापू के लगते है ये बच्चे,
अधनंगे फकीर, बेहद निडर
दुनिया के बच्चे हैं,
अब तक हैं जो बेघर
अंबर की छतरी के नीचे,
ये बच्चे कर्ज हैं भारत पर!
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