जाग चुके थे,
सूरज चढ़ चुका था,
चिड़ियां गा चुकी थी,
चूहे और छछुंदर
बिलोर–बिलोर के
जा चुके थे,
रोशनी फैल चुकी थी,
मन उचट चुका था,
भजन हो चुका था
रात जा चुकी थी,
ठंड लग नहीं रही थी
कंबल उधड़ चुका था,
मच्छर कमरे के अंदर
और मच्छरदानी के ऊपर
से उड़ चुके थे,
अंदर के मच्छर,
इतना खून पी
चुके थे की,
मस्त और भारी
हो चुके थे,
मच्छरदानी के
निचले ओर पर
मच्छरदानी खुलने
की फिराक मे
बैठे हुए ऊब रहे थे,
चद्दर एक तरफ
उघर चुकी थी,
कूलर का पानी
खतम हो गया था,
पंखा गरम हवा
फेंक रहा था,
ब्रह्म मुहूर्त
जा चुका था,
विद्यार्थी अब
मै कैसे बनूं अच्छा
मेरा वक्त गुजर चुका था!
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