Wednesday 13 April 2022

जहां हो

रह चुका हूं
मै वहां पर,
तुम जहां पर हो,
से चुका वो
सारी उल्फत
तुम जहां पर हो,

बोलकर मै चुप हुआ हूं
तुम बोलती जो हो,
मै पारकर आगे बढ़ा हूं
तुम जिस किनारे हो,

तुम तपिश मे
जिस जलन की,
झुलसती हो आज,
मै जानता हूं
उन दरों से
निकलने के राज़,

जिस गली से 
तुम गुज़र कर
घर पे लौटे हो,
उस धूप की
चादर को हम
ओढ़े बिछाए हैं,

जिस खंजरों को आज
चाकू कह रहे हो तुम,
सीने मे रखकर
उनको हमने
खिलजी रुलाए हैं,

तुम मित्र और
बहनों को लेकर
कर रही जो प्रश्न,
मै कर चुका हूं
वर्षों पहले
वही तुम्हारे संग,

तुम मिल बिछड़कर
आज जैसे
देखती हो सत्य,
मै आज तक भी
जूझता हूं
लेके अपना अर्ध–सत्य।

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