या चलना ही नहीं आता
जाता हूं जिधर भी मै
क्यों ज्यादा नहीं पाता,
आता छूट जाता है,
लिखा ना खूब जाता है,
मै जिसको बात कहता हूं,
वो हांसिए मे ही पाता हूं,
मै फिर से दुहराता,
मै लिख के बैठाता हूं,
मै मंजिल ढूंढता अब तक
या मंजिल को गँवाता हूं,
मंजिल के किनारे मै
आकर मुस्कुराता हूं,
हठ है जिंदगी के ये
या सच से दूर जाता हूं,
सब राहें एक ही तो हैं,
फिर क्यों दौड़ता हूं मै,
समय मेरा नहीं बचता
क्यूं फिर खाका बनाता हूं?
राम का नाम ले चलना या
चलकर राम में मिलना,
राम के फैसले हैं ये
जिन्हे अपना बताता हूं!
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