Sunday 3 April 2022

Spectrum

ये तुम्हारी मेरी बातें
खतम नहीं होती,

हर पढ़ाई के बाद 
तकरार है कोई,
कोई प्रश्न छूटता है
इनकार है कोई,

किसी वजह में 
कोई वजह है,
जो बेवजह लगती है,
कोई भाव है
खालिश भरी
जो बेवजन लगती है,

कोई हाल पुराना है
जो स्वर्ग था बना
कोई आज कलेश है
जो नर्क लग रहा,

हर बार कोई 
एक बिंदु 
छूट जाता है,
रह–रह के वही
घूम–घूम 
फिर से आता है,,

कोई है नहीं किनारा
ना ओर –छोर है,
बातों का हमारी
मज़्म और है,

तर्क है, कुतर्क है,
चढ़ी हुई हैं त्यौरियां,
आज नृत्य कर रही हैं
बढ़–चढ़ के बोलियां,

इतिहास के प्रसंग
भूगर्भ की है पंक्तिया,
समाज की भी झांकी है
फ़िल्मों की बैसाखियां,

देश है, विदेश है
विज्ञान की है दुर्दशा
तुम्हारी बात में कभी तो
सात रंग दिख रहा,

तुम उमंग की तरह 
सूर्य से बिखर गई,
रोशनी नई बनी
झंकृत सभी मे हो गई,

कोयलों की गूंज है
भंवर की गुनगुनाहटें,
बात की सरिता है करती
पर्वतों मे आहटें,

इधर–उधर
पलक–झपक,
चटर–पटर
खटर–खटर,
उठा–पटक
धबड़–धबड़,
दबी हैं मेरी बोलियां,

कथक–सदृश
लस्य–रस,
घूमती घूमर–घूमर
आग –जल
पृथक–पृथक,
गर्जती–सी 
कलारिपयट्ट,

मराठी–आंग्ल की भिड़ंत
हिंदी वाक प्रखर–सरल
रंग–रूप का मिलन
निर्बाध हो रहा यौवन,
अधर के मिलन–चुभन
दूर–पास, सरल–सघन,

आज जुगलबंदी करती,
फैली हुई Spectrum !🙏🙏

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