चला गया तुम्हारे
जैसा होना भी,
ना प्रीत के संग ही
प्रीत मिली,
ना रोने के संग
रोना ही,
कौन सरल
और सौम्य रह गया
जो हंसता होगा,
बिन मतलब
कौन गरल
घूंट पिएगा,
किसी और का
लगा तलब,
कौन है जो फिर
इधर उधर की
बातों में भी रस लेगा,
कौन मेरी भोली बातों
मेरे ही मुख सूनेगा,
कौन करेगा इंतजार
मेरे फोन का घंटों तक,
कौन लपक कर
बाहर जाकर
मुझे बताएगा छुपकर,
कौन मेरी, जग की
कटुता को
समझ के परे ही पाएगा,
कौन शब्द से आहत होकर
नाहक नीर बहायेगा,
कौन मेरी बात राम तक
बिना लपेट पहुंचा देगा,
कौन चांद को धर ललाट पर
धीरे से सो जायेगा,
कौन कहेगा जन्म–जन्म के
खेल हैं सारे बंधन के
कौन गोपाल की प्रतिमा का सा
मुरली बांधे क्रंदन मे,
विप्लव को कौन पकड़ लेगा
बच्चों–सा पैर पटक लेगा,
तुम चली गई तो नहीं हवाएं
पूरब से मद्धम बहती हैं,
नीम के पेड़ के छांव तले
अब नहीं नरम दुख बहती है,
अब कौन तुम्हारे जैसा है
जो पढ़ने को कहा करेगा
कौन है तुमसा
अब जहां में
जो हृदय मे फिर से आ बसेगा?
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