Monday 4 April 2022

तुस्सी जा रहे हो!

तुम हमे रुलाकर
हंसाने के बाद
फिर से जा रही हो,

हमारे साथ कुछ जीकर
हमे जिंदा कर
जीना सिखाने के बाद
फिर से जा रही हो,

जैसे रात जाती
ओस की बूंदे गिराकर,
जैसे धूप जाती है
चिलचिलाने के बाद,
जैसे लहर जाती
पांव धोने के बाद,
जैसे रूह जाती है
सो जाने के बाद,
तुम फिर से जा रही हो!

सारनाथ भी बस 
बगल में नही था,
गंगा नदी भी 
दूर बह रही थी,
भोलेनाथ को भी 
जानते नही थे,
हम सुबह–ए –बनारस को
मानते नही थे,
हमे उनसे मिलाने के बाद
तुम फिर से जा रही हो!

बरसात आकर के
हमारे घर भिगोती थी,
धूप तंग करती हमे
छूकर जलाती थी,
बारात जाती थी
सड़क से शोर–गुल करके,
नवरात्र रातों मे हमे
नाहक जगाते थे,
इन्हे त्यौहार बनाने के बाद
तुम फिर से जा रही हो!

हमारी परीक्षा थी
और जागती थी तुम,
अंधेरों मे निराशा मे
उंगली थामती थी तुम,
होली मे रंगों मे
महज बचते रहे थे हम,
हमारे हाथ रंगों से सजाकर
चिढ़ाती रही थी तुम,
हमारे रंग मिलाने के बाद
फिर से जा रही हो तुम!

फिल्में थी या
बहस कर रहे थे,
हम जो भी कुछ
बेवजह कर रहे थे,
वही जीने का मकसद है
बताकर आज हम सबको,
गीता आज अर्जुन को
जिलाकर जा रही हो तुम!

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