पार्क के बेंच की
पीछे की सड़क से,
और हम कर रहे थे
बिन बात की कोई बात,
की खातमबंद दिखा रहा था
मै तुम्हें कश्मीर की
अपने फोन पर,
अच्छे–दर के कुछ फूलों
कोई रह गई होगी कसर
वो किस मिज़ाज मे लुप्त था
वहां का कारीगर,
शायद बुला लिया होगा
बीवी ने सामान उतारने
और लटक गया होगा
काम उधर का उधर,
जैसे स्कूल मे 6वी की
हिंदी की परीक्षा मे
हो गई थी तुम बीमार,
और इसी बीच अटक गई
मेरी उंगली तुम्हारे बालों पर
और डांट दिया तुमने मुझे
ऊंची नज़र कर,
और बात आ गई कल पर
जब तुम गिना दी मुझको
कल देर हुई किधर,
मेरे notes की कीमत
थी क्यूं तुमसे भी बढ़कर
नहीं देता अगर परीक्षा
तो ढाता कौन सा कहर,
Ice–cream जाएगी पिघल
अगर तुम रुक नही इधर,
मौसा जी कल घूमने
जा रहे है तिलकनगर,
जैसे जापान है या सिंगापुर,
और तुम्हारी सहेली
आज है किधर,
लोग शाम को टहलने
आते हैं वक्त पर,
ना इधर–उधर थूंकते,
ना देखते इधर–उधर,
राम नवमी पर
राम का जनम,
क्यूं हुआ दोपहर,
मुझे जानते नहीं तुम
मै बिफरती हूं किस कदर
और ठहरती हूं किधर,
जाना है कल दिल्ली
कॉलेज खुलेगा कल,
अब कब मिलन होगा,
हम कब मिलेंगे कल,
बिन बात ही निकल गया
ये हसीन पल,
लोग आ जा रहे हैं अभी भी,
और हम कर रहे हैं
बिन बात की बात।
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