कितनी आसानी से
आ जाती हाथ मे,
गुच्छे दर गुच्छे
और मुट्ठियाँ भर जाती,
एक पत्थर की दरकार
फिर सारी उड़ जाती,
पेट चीर कर खाते बच्चे
सस्ता बादाम बन जाती,
चिलबिल की तितलियां
बच्चों जैसी ही
साथ खेलती–खाती,
इस पीढ़ी से उस पीढ़ी
याद बनकर रह जाती,
हम बड़े हो गए भले बहुत
नाम किया या किया नहीं कुछ
पर चिलबिल नहीं चिढ़ाती
कहीं दूर से उड़ते–उड़ते
पैरों तक आ जाती,
पेट चीर कर
खुशियां देती
दोस्ती अब तक निभाती।
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