पर उड़ जाना हैं,
इस डाल पे
पक्षी तेरा तो
एक रात का ही
ठिकाना है,
यहां मिली है
कटुक निबोरी,
वहां फला है
मीठा दाना,
खाकर इनको
डाल डाल से
बहता जल
पीने जाना है,
है बस सफर
रात का पक्षी,
सुबह सवेरे
उड़ जाना है।
पर क्या है
डाल डाल का
खाना अलग
अलग दाना है,
क्या किसी डाल पर
जीना भर है,
किसी डाल पर
खुल गाना है,
जो हवा नहीं
और मलय नहीं
कुछ पल ओट की
पत्तों के,
तो क्या कुछ नया
बहाना लेकर
फुदक–फुदक
मन बहलाना है?
नीड़ बनाई जहां
खोह खोजकर,
कुछ समय वहां
बिताना है,
तूफान आए
और पतझड़ तो भी
पल पल नहीं
मचल जाना है,
पक्षी अटल है
बल और छल,
इनका तो
आना–जाना है,
नीड़ बनाई
तिनका–तिनका
फिर पिंजरे से क्यूं
ललचाना है?
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