बातें तुम्हारी कुछ भी हो, 
मुझको अच्छी लगती हैं,
गाली तुम्हारी आवाज मे हो।
मुझको अच्छा लगता है, 
जब timepass भी करती हो,
मुझको अच्छा लगता है,
जब मेरे साथ मे होती हो।
पर तुम जब होती साथ नहीं 
तो कुछ भी अच्छा नहीं लगे,
जब तुम करती हो बात नहीं 
तो तुम क्यों अच्छी नहीं लगी ?
क्या प्यार मेरा बस नाम का है?
Transaction ये किस काम का है?
दिव्यांशी वाली प्रीति क्या है? 
मीरा-तुलसी की रीति क्या है ?
तुम मेरे फोन की tariff हो 
जो खतम हो गयी बीच मे ही? 
या exam का नंबर हो,
जो cut-off के नीचे ही अटकी?
गलती मेरे एहसास की है,
फिर तत्व भला किस काम है?
बजरंग-बली को मोती तो,
बस नाम ’सियावर-राम’ का है!
