सर्वज्ञ मेरे प्रियतम्
तुम मेरे हिय की सिया
तुम हृदय की राम हो।
मन में धरी
सुगंधित मेरी
हिय कुंज कि तुम धाम हो,
तुम सिया मेरी
तुम ही मेरी राम हो।
मधुमालती हो भोर की,
पारिजात मेरी रात की,
मेरे कटु वचनों को चुनती
विश्राम कि तुम शाम हो,
सिय तुम मेरी दिवस की
तुम ही मेरी राम हो ।
तुम सुदर्शन-सोम रस हो
तुम शिवम् की चांद भी,
तुम गजानन-राग हो
तुम मारुति-ध्यान भी,
पंचवटी की वायु मधुर
तुम ही सिया की राम हो।
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