Thursday 2 May 2013

धीरज

पलकों मे कुछ स्वप्न लिए
जब साहिल पर तु आएगी, 
विस्तार देखकर सागर का
फिर मन ही मन घबराएगी

तब अपनी निर्दिष्ट सफलता पर
ऐ नाव ज़रा तु धीरज रख ।

अपनी धुन में रमा हुआ
जब नाविक तुझे निकालेगा,
जब ठहेरे पानी से खेकर
मझधार में तुमको तारेगा,

तब उसकी निश्छल मंशा पर
ऐ नाव ज़रा तु धीरज रख ।

जब तट पर करके प्रहार
तुझे वेग देगा मल्हार,
फिर धीमे से पीछे करके
जल को, देगा तुझको विस्तार,


तब उसकी अचल प्रबलता पर
ऐ नाव ज़रा
तु धीरज रख ।

छुट -मुट लहरों से मिलकर
जब तेरा मन उकसायेगा,
उन्मुक्त लहर से मिलने को
फिर तेरा मन ललचाएगा,

तब उसकी मंद कुशलता पर
ऐ नाव ज़रा तू धीरज रख । 

जब विलसित से मिल जायेंगे
कई बंधू तुझको राहों मे,
प्रेम-क्रीडा में मस्त कहीं
अल्हड़ सागर की बाँहों में,

तब अपनी व्याकुलता पर
ऐ नाव ज़रा तु धीरज रख ।


जब पहली बूँद मचलकर कुछ
तेरे मस्तक को चूमेगी,
लहरों की बाँहों से रिसकर
हर रोम में सिरहन झूमेगी,

तब अपनी उत्कंठा पर
ऐ नाव ज़रा
तु धीरज रख ।

इक बार अनंत के साए मे
तु बेसुध हो लहराएगी,
मदहोश किसी गहरायी मे
कई बार हिलोरे खाएगी, 

उन्मादों की उस सरिता में 
ऐ नाव ज़रा तु धीरज रख । 

जब तृप्त होकर अरमानों से 
निश्चल धारा मे ठहरेगी,
और यादों का उपहार लिये 
तु फिर से तट पर फेहरेगी,

तब तक नाविक झमता पर
ऐ नाव तु पूरा धीरज रख !!

3 comments:

संगम

कुछ उन्होंने मान ली  कुछ मैंने बातें कही नहीं, कुछ मेरी नर्म जुबां थी  कुछ उनकी मंद मुस्कान थी, कुछ उनके घर का आँगन था  कुछ मेरी द्वार पर पू...