Thursday, 13 August 2015

जुस्तजूं

दिल को होते हैं तुझसे गिले शिक़वे गम
क्यों ना तुझे मै पूरा जान लुँ !!

सजदा करूँ तुझको शाम-ओ-सहर
ख्वाबों मे देखूँ तुझे हर पहर,
रूमानियत में भी 
तेरी करूँ इल्तिज़ा,

क्यों न तुझको मै ऐसा खुदा मान लुँ ॥ 

हर नज़र में मेरी 
तेरा ही अक़्स हो,
बिन तेरे न कोई 
फिर मेरा शख़्स हो,

माएने ज़िन्दगी के
कुछ ऐसे मै,

तेरे मकसद मे होना फ़ना मान लूँ ॥ 

सौदा गर जो करू 
अपना बाज़ार में,
मेरी बोली लगे तेरे 
आसार मे,

उस मुवक्किल को 
अपनी मुक़द्दर मे मै,

क्यों न जन्नत का ही रहनुमा लुँ ॥ 


-धीरू 










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