वो जो सुबह पार्क मे
जॉगिंग करने अाती है,
मेरे बग़ल से दौड़कर
गुज़र जाती है,
वो मेरे साथ चल पाती
तो वो तुम होती।
वो जो पुस्तकालय मे
अाखिरी सीट पर बैठती है,
मन मे शरारत लिये
मुझसे नाहक ऐंठती है,
वो ज़रा ग़ुस्सा कर पाती
तो वो तुम होती।
वो जो क्लास मे प्रश्न
बार-बार पूछती है,
पर जवाब मे वजह
अपना ही ढ़ूंढती है,
वो 'नालायक' मुझे कह पाती
तो वो तुम होती।
वो जो छुपकर
करती है बातें मुझसे,
वो जो समझती है
ख़ुद को चालाक ख़ुद से,
गर मुझको भी समझ पाती
तो वो तुम होती।
वो जो होंठों को भींचकर
शरारत छुपाती है,
फिर भी अनचाही हँसी
जिसकी छूट जाती है,
जो आँखों से मुस्कूराती है,
जो तबियत से खिलखिलाती है,
जिसकी ख़ुशी मन से,
पूरे चेहरे पर छा जाती है,
वो दिखने मे काली होती
तो वो तुम होती।
जो वक़्त के साथ
थोड़ा तेज़ दौड़ पाता,
जो ग़ुस्से को थोड़ा-सा
और झेल पाता,
जो बातों को ढ़ंग से
कुछ और कह पाता,
जो बंधन मे थोड़ी देर
और रह पाता,
जो मन से उजला होता,
तो वो मै होता।
जॉगिंग करने अाती है,
मेरे बग़ल से दौड़कर
गुज़र जाती है,
वो मेरे साथ चल पाती
तो वो तुम होती।
वो जो पुस्तकालय मे
अाखिरी सीट पर बैठती है,
मन मे शरारत लिये
मुझसे नाहक ऐंठती है,
वो ज़रा ग़ुस्सा कर पाती
तो वो तुम होती।
वो जो क्लास मे प्रश्न
बार-बार पूछती है,
पर जवाब मे वजह
अपना ही ढ़ूंढती है,
वो 'नालायक' मुझे कह पाती
तो वो तुम होती।
वो जो छुपकर
करती है बातें मुझसे,
वो जो समझती है
ख़ुद को चालाक ख़ुद से,
गर मुझको भी समझ पाती
तो वो तुम होती।
वो जो होंठों को भींचकर
शरारत छुपाती है,
फिर भी अनचाही हँसी
जिसकी छूट जाती है,
जो आँखों से मुस्कूराती है,
जो तबियत से खिलखिलाती है,
जिसकी ख़ुशी मन से,
पूरे चेहरे पर छा जाती है,
वो दिखने मे काली होती
तो वो तुम होती।
जो वक़्त के साथ
थोड़ा तेज़ दौड़ पाता,
जो ग़ुस्से को थोड़ा-सा
और झेल पाता,
जो बातों को ढ़ंग से
कुछ और कह पाता,
जो बंधन मे थोड़ी देर
और रह पाता,
जो मन से उजला होता,
तो वो मै होता।
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