Friday 6 April 2018

मीठी-मिशरी

काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।

न होती तुम्हारी
आवाज़ मीठी,
न होता तुम्हारा
अंदाज़ बचपन,

होती तुम्हारी भी
बातों मे अईठन,
बिगड़ जाती तुम भी
हर बात, हर क्षण,

मन मे तुम्हारे भी
वीषाद होता,
थोड़ा-सा तुममे भी
अभिमान होता,

तुम मेरे ज़ेहन मे यूँ उतरी ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

नाक पर तुम्हारे
दो तिल ना होते,
होंठों की पतली
सुराही ना होती,

मै बाहों मे लेकर
तुम्हे चुम लेता,
और दुनिया मे कोई
तबाही ना होती,

मेरे मुहब्बत को तस्लीम मिलती, बाज़ार मे उसकी तफ़री ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

आँखों मे झूठा-सा
ग़ुस्सा ना होता,
मै तुम्हारी ढ़लती शामों का
हिस्सा ना होता,

तुम स्कूल से आकर
मेरी गोद मे ना सोती,
मै सहलाता ना सर
कोई किस्सा ना होता,

तो फिर तुमसे दूरी यूँ अखरी ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

ना करते परीक्षा
पढ़ाई की बातें,
कवितायें मेरी
ना किसीकी सुनाते,

न गाँधी,अहिंसा,
न 'गीता' की बातें,
न महिला,न बेब़स,
न बँटती सरहदें,

मेरी समझ इतनी गहरी ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

ना दिवाली के दिये
मेरे संग सजाती,
न होली अकेले
मेरे संग मनाती,

ना रामचरित,
ना 'दिनकर', ना 'बच्चन',
ना मै पढ़ सुनाता
ना तुम गुनगुनाती,

तो मेरी ज़ुबाँ भी यूँ फिसली ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

रातों मे मेसेज से
बातें ना होती,
जो सच मै न कहता
तुम झुठ ना दुहराती,

ना बीमारियों पे
कोई मलहम लगाते,
ना शामें सुबकतीं
ना रातों मनाते,

तो 'पम्मी' भी कोई लड़की ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

ना खाना बनाती
मेरे संग दुपहर,
ना ही परागु
ना ही कोई मधुकर,

इन ज़ायक़ों से वाक़िफ़ यूँ ऊँगली ना होती।
काश ! की तुम मीठी-मिशरी ना होती।।

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