Tuesday 1 May 2018

गज़ल़

दिल के हैं अच्छे लेकिन, बुरा भी तो करते हैं।

Auto मे या metro मे,फ़ोन मिलाकर वो,
बातें भी तो करते हैं,हँसने भी तो लगते हैं।

फ़ुर्सत मे वो बैठे हों और फ़ोन मै कर दूँ तो,
थकने भी तो लगते हैं,सोने भी तो लगते हैं।

नाराज़ हों हमसे वो,तारीफ़ मै कर दूँ तो,
झपटने भी तो लगते हैं,लड़ने भी तो लगते हैं।

मन से उनको निकालूँ अगर,कविताओं में मेरी,
आने भी तो लगते हैं, बसने भी तो लगते हैं।

परेशान वो बैठें हों, और याद मै कर लूँ तो,
रोने भी तो लगते हैं,सम्भलने भी तो लगते हैं।

होली पर उनको मै, रंग लगा दूँ तो,
घुलने भी तो लगते हैं,मिलने भी तो लगते हैं।

ग़ुस्से में अगर आकर,ना फ़ोन उठाऊँ तो,
Telegram पे भी आते हैं, whatsapp भी तो करते हैं।

छुपकर मिलने पर,अॉंखों से मेरी रिसकर,
बाहों मे पिघलकर,सासों मे बसने भी तो लगते हैं।

कस्मे-वादों पर जब बात हो हिम्मत की,
डरने भी तो लगते हैं,हटने भी तो लगते हैं।

ज़ुबान से अकसर, सुनते ही नहीं जो,ब्लाग पे आकर वो,
पढ़ने भी तो लगते हैं,समझने भी तो लगते हैं।

दिल के हैं अच्छे लेकिन, बुरा भी तो करते हैं।

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