Wednesday 23 May 2018

Rape

"आशाराम को सज़ा हो गयी !"
वो चहक गयी यह कहकर,
"चलो किसी दरिंदे को सज़ा मिली !"
बोली वो अख़बार पढ़कर।

भारत आज आगे बढ़ा है,
यह समझकर,

वह बोली,
"उसने सोचा होगा क्या
कैसे अकेले पाकर,
दबोचा होगा कहीं
अकेले में ले जाकर,
आँखें तरेरी होगी
चेहरे को लाल-कर,
जकड़ लिया होगा
उसको डराकर,
चुप करा दिया होगा
उसको चिल्लाकर।

और वो अबला,
सिहर गयी होगी
सच जानकर,
छटपटायी होगी कुछ
ताक़त लगाकर,
माँ को ढूँढती हुयी
झाँकी होगी बाहर,
पुकारा होगा 'मम्मी ऽ ऽऽऽऽऽऽ'
शायद घबराकर

किंतु रुका होगा वो
अपनी ताक़त आज़माकर,
शांत हुआ होगा
अपने अहम् को बढ़ाकर।"

"महफ़ूज़ रखा मुझको
घर में छुपाकर,
बचपन में ही योनि से
परिचय कराकर,
हर हरकत पे
मुझको ही 'रंडी' बताकर,
झपटकर, डपटकर,
धमकाकर,डराकर,
मेरे पिता ने मुझे
दुनिया से बचाकर।

मै नहाती भी नहीं हूँ
पूरे कपड़े उतारकर,
जो सर दर्द होता
कभी भी भयंकर,
खा लेती हूँ एक साथ
Painkiller दो चार,
पढ़ने भी जाती
नहीं हूँ मै बाहर,
नहीं हूँ 'उन'
लड़कियों जैसी फक्कड़,
इसलिए नहीं होगा मेरा
Rape भी कभी कर।"

बता ही रही थी यह
मुझे वो phone पर,
की आवाज़ आयी
"सावित्री ! बेटी आओ इधर"
Phone काटा उसने
डरकर, सम्भलकर !

एक हल्की-सी आवाज़
आयी थी रिसकर,
"हम्म ! मेरी बेटी वैसी नहीं है ! "
कहा ब्राह्मण ने
शायद, अख़बार पढ़कर।

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