हमको लेना मंजूर कहाँ,
दोनों राह दिखाने वाले
हमसा कोई मगरूर कहाँ?
कोई हमसे कैसे कहे
हमको आता नहीं कुछ भी
कोई हमसे पूछ ले कैसे
हमको न आए जो भी,
हम सरल-सहज, सुलझे-सुलझे
है अलग पंथ पर मध्य उगे,
हम मुस्कुराकर हाथ मिलाते
आते-जाते टक्कर खाते
राम-श्याम के हम पोते!
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