रोज मिलनेवालो सा ख़फ़ा नहीं होते,
करते हैं खयाल परिंदे भी घोंसले का
उड़ने से ही वो ज़ुदा नहीं होते,
मन मे बताते कहानियां हजारों
बहलाते हैं खुद को देखकर उजाड़ो,
जान देते हैं सरहदों पर देश के लिए
महफ़िलों के कभी परवाह नही होते,
मुफ़लिसी में भी शामियाना सजाते हैं
भरी आंखों से देखकर झिलमिलाते हैं,
चाँद का साथ तो सितारें देते हैं
अपनों-सा रोशनी मे मुँह घुमा नहीं लेते!