Sunday, 30 March 2025

इश्क

इश्क़ हुआ है अब
साथ जीने-मरने की सौगंध,
सबसे अलग हो कर सोच 
साथ का इकरार, 
पर समस्या दूर 
WhatsApp की कॉल, 
यह धुर-धूसरित लंब
यह परस्पर प्रेम 
और साथ का दरकार!

सुबह और रात

रात का आराम 
शाम का दिमाग, 
रात का निश्कर्ष 
शाम का विन्यास, 
रात का घर 
शाम का लौटाव,

सुबह की अग्नि 
और रात का जल, 
आज शाम की शांति 
और कल का खल,
सुबह अलग का भाव
शाम को परिवार, 
पास का समाज!

बच्चा

सड़क पर खेलता बच्चा
माँ से बेख़बर, 
पिता की डांट से बेसुध
और कुछ लोग से अनजान, 
किसी भी भय से परे 
और कूद-कूद 
लगाता छलांग 
नाच कर दिखलाता 
और हो रहा मदमस्त,
यह मंच उसका 
यह मंच सारे 
जहाँ पर उसका,
वह दुनिया का कृष्ण!

Saturday, 29 March 2025

हमराही

तुम्हारा साथ हमारे चलना 
और किसी के साथ नहीं, 
साथ हमारे लड़ना 
और किसी से बात नहीं,
तुम्हारा छुपकर हमसे बतियाना 
और किसी को घास नहीं, 
मेरे लिये मिठाई लेकर 
डिब्बा भरकर ले आना, 
मेरी बातों पर खुलकर हंसना 
और किसी से हट जाना, 
मेरे संग की मार्केटदारी
साथ हमारे गोलगप्पे, 
मेरी बनी सहेली मेरी
ऑफिस वाले कुछ गप्पें,
मेरा मजाक बनाना खुलकर 
धोती उधेड़कर रख देना,
साथ हमारे चलते डरना
और किसी से जल जाना,
भजन हमारा सुनकर अपने 
सखियों के संग हंस देना,
दाम लगाना पाई-पाई 
हमसे आकर पक्का करना,
और पसीने के टेसु को
पंखे से छूकर ढकना,
याद आयेगी साथ तुम्हारे
स्टेशन की सब्जी-रोटी,
चिढ़ने वाली झूठी-मूठी
अदाकार छोटी-मोटी

एहसानमंद

एहसान किया था किसीने 
आशियाँ दिलाया था,
किसीने साथ चलकर
राह का कंकर हटाया था,
किसी ने बाजुओं पर
लिख लिया ट्रेन का नम्बर, 
किसी ने ट्रॉलियों को 
खींचकर बस धराया था,
किसी ने बैग धरकर
संग तुम्हारे कर लिया शाॅपिंग, 
दामन किसीका ओढ़कर
तुम लिख रही थी गीत,
सबको किया था याद
महफ़िल सजी थी जब,
आए गुल-ए-गुलफाम
आए फिरके मज़हब,
आए थे सहकर्मी
आए थे हमवतन,
आए सभी थे संत
आए थे कुछ गंधर्व, 
आए थे बदनसीब 
आए मेरे रकीब,
आए थे मेहरबान 
आए थे सब तलब,
मेहंदी लगी तुम्हें
हम ही थे बेख़बर!

Wednesday, 12 March 2025

रुपा

सोने से भी महंगी
एक हमारी रुपा,
उसकी निर्मल नीरवता 
उसकी कोमल चंचलता, 
उल्लासपूर्ण और काबिल 
एक संपूर्ण स्वरुपा!

एक खिली मुस्कान 
एक छवि नादान, 
एक तंज का जोर
एक डंक का शोर,
एक छुपा संदर्भ 
एक अटल विश्वास, 
एक किसी का भेद
एक समर्पित भाव, 
एक छांव की शर्त 
एक तेज की धूप
एक हमारी रूपा!

कहानी

एक कहानी
पूरी सुन लूं, 
राजा की और 
रानी की, 
एक छोर से शुरू करूँ 
और एक छोर तक जाऊँ, 
एक किनारे खड़ा रहूँ 
और एक राग बजाऊं, 
एक सुनाऊँ तुम्हें कहानी 
एक मे मैं बंध जाऊँ, 
एक माँग की मन्नत मांगूँ
एक से प्रीत निभाऊं, 
एक देश से प्रेम करुं 
और एक की शर्त उठाऊं!

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...