आशियाँ दिलाया था,
किसीने साथ चलकर
राह का कंकर हटाया था,
किसी ने बाजुओं पर
लिख लिया ट्रेन का नम्बर, 
किसी ने ट्रॉलियों को 
खींचकर बस धराया था,
किसी ने बैग धरकर
संग तुम्हारे कर लिया शाॅपिंग, 
दामन किसीका ओढ़कर
तुम लिख रही थी गीत,
सबको किया था याद
महफ़िल सजी थी जब,
आए गुल-ए-गुलफाम
आए फिरके मज़हब,
आए थे सहकर्मी
आए थे हमवतन,
आए सभी थे संत
आए थे कुछ गंधर्व, 
आए थे बदनसीब 
आए मेरे रकीब,
आए थे मेहरबान 
आए थे सब तलब,
मेहंदी लगी तुम्हें
हम ही थे बेख़बर!
 
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