आयी मेरे अन्तर
शांत हुई जिज्ञासा,
त्याग की नई भाषा
देखी मैंने अन्तर
मिटी सकल आशा,
चित्त का उल्लास
महसूस हुआ निरंतर
खुद का है आभास,
बोली का विन्यास
राम नाम का अक्षर
बिना कहे संबाद,
हर क्षण-कण एहसास
मैं और वो का भेद
गृहस्थ जीवन संन्यास,
भ्रम की माया फांस
राम राह का लेश
धीर धर्म दिव्यांश!
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