हमारा था, 
हमारा ठिकाना 
अपना ठिकाना, 
गंगा का किनारा 
यारों का सहारा,
पढ़ने की लत 
और उड़ने की हद,
सबको मिला था 
खुला आशियाना, 
पेड़ों के नीचे 
पढ़ाई-लिखाई, 
मटके का पानी 
और सत्तू मे लाई, 
आम के जोड़ों के 
किलो भर निवाले, 
आंदोलनों के भरे
किस्से अखबारें,
किसी हशरतों को
मन में दुहराना!
 
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