Wednesday 10 January 2018

तुम्हारे जैसी

कोई क्यूँ नहीं है, तुम्हारे जैसी ?

कोई क्यूँ नहीं ऐसी चंचल ?
जो आँखें भी दिखाती हो,
मुस्कुराती भी हो,
जो रूठ जाती हो,
फिर मान जाती हो,
जो मेरे रूठ जाने पर,
मुझे मनाती भी हो ?

कोई क्यूँ नहीं है इतनी ज़िद्दी ?
जो break-up करके,
बतियाती ना हो,
जो चली जाने पर,
फिर आती ना हो,
जो phone काट देती हो,
पर उठाती ना हो ?

कोई क्यूँ नहीं है, इतनी मेहनती ?
जो पढ़ती हो ख़ुद भी,
पढ़ाती भी हो,
मुझको तड़के सुबह ही,
जगाती भी हो,
और रात भर मुझसे,
बतियाती भी हो ?

क्यूँ नहीं कोई मेरे आस-पास ?
जो मेरे class मे हो,
मेरी जाति मे हो,
जिसके सपने भी हों,
और दिखाती भी हो,
जो राम नाम ले,
और निभाती भी हो ?

है क्या तुम्हारे जैसा कोई ?
जिसको चूमने का दिल करे,
और वो इतराती ना हो,
Cinema मे कोने की सीट पर,
जो मेरे साथ मे घबराती ना हो,
जो मुझसे प्रेम भी करे और
डर भी जाती ना हो,
जिसके 'ऊपर' लिखूँ मै कविता कोई,
वो पढ़ती भी हो तो मिटाती ना हो ?

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