कर्ता शरीर ऊर्जा भ्रमण,
आगे चलते रहने का 
पीछे-पीछे छुपे तन का 
प्राण तन होता विसर्जन
मेरा दिल कर्ता क्रंदन 
ढूँढना चाहता कोई मनोरंजन 
सब जानकर बैठा
किसी से कर्ता खेल 
कर्ता किसी साथ वंदन,
आशक्त और अशांत 
यह काम ख़त्म कर 
खत्म कर्ता कैसा बंधन,
और फिर खोजता 
मन के आवर्तन,
स्पन्दन से दूर 
ठहर कर कहीं,
किया अपवर्जन 
ऊँचे सुरों के शोर 
स्तब्ध विस्मृत स्पन्दन!
 
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