कुछ भी न हो संवाद,
चुप्पी से मेरे प्रलाप का 
करना तुम प्रतिवाद,
यह कैसा मेरा लगाव
जो बना है मेरा अभाव,
मेरे हाथों की मुट्ठी से 
तुम्हारे कन्धों पर घाव,
आने-जाने से मुक्त 
दर्शन- दर्पण से मुक्त,
कुछ शर्तों का प्रभाव 
समय का स्वभाव,
कहने-सुनने को भेद 
विमुख परस्पर भाव,
कुछ और दिनों तक साथ 
तुम्हारा मेरा चुनाव!🙏🏽
 
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