उसको देता विचार,
उसको देता समय, 
उसको रखता साथ-साथ 
उसमे रहता हर समय।
मै भ्रम की चिता जलाकर 
उसमे जलता दिन भर,
आत्मदाह मै करता,
पल-पल, हर पल।
भ्रम का धुँआ उठता,
मै गुर्राता, खीझ उठता,
अकुलाता,
मै भ्रम मे छुपकर 
आत्मा भुलाता,
मै भ्रम की चाहत मे
हीरा जन्म गंवाता।
मृग-मरीचिका मे 
चलते जाता, 
भ्रम मे रहता 
भ्रम फैलाता
मै भ्रम पालता।
 
No comments:
Post a Comment