कुछ और किनारे बाकी हैं।
कुछ थालियों में खा चुके,
कुछ बैठ चुके छांवो में,
कुछ घरों में रह चुके 
कुछ दिल में रहना बाकी है।
हम बातें करते बिस्तर पर, 
हम बातें करते राम पर, 
हम साथ देखते जाति को, 
हम हाथ बटाते बच्चों पर,
उन पढ़ने वाली बातों को
अब मन में गढ़ना बाकी है।
 
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