Thursday 24 October 2024

देखूँ और दिखाऊँ

मैं कुछ देखूँ अपने भीतर 
कुछ अपना अंतर दिखाऊँ,
कुछ देखूँ दुनियाभर के रंग
कुछ मिलकर नाँचु-गाऊँ 
कुछ और के दिल मे झाँकू
कुछ उनके दर्द भुलाऊँ,

कुछ करने दूँ उनके मन का
कुछ अपनी चाल खेलाऊँ,
कुछ तड़पन रहने दूँ मन में
कुछ मरहम ढूँढ के लाऊँ,

जादू कर दूँ भेद छुपाकर 
मुट्ठी खोल हँसाऊँ,
मंत्र फूँक दूँ राम नाम का
आँखो को उलझाऊँ!

हजारों कदम

हजारों कदम और चलूँ 
कुछ कदम मिलाकर 
सीधी नजर कर,
कुछ लाईन तोड़कर 
औरों से अलग हटकर,
कुछ पल बैठकर सुस्ता लूँ
कुछ साँसों को कैद कर लूँ
राहों मे फरिश्तों से मिलूँ
अँगुलीमाल के रास्ते 
और कुछ रथयात्रा मे
रस्सियाँ खींचता 
हजारों-हजार कदम और चलूँ!

Thursday 17 October 2024

चाँद

यूँ चाँद बनकर वो 
ज़मीं पर चले आए,
जैसे हमको लूटने वो
हमीं से चले आए,

काले बाल, काली घटा-सी
काला दुकूल, बादल की लता-सी
आँखों की हया, चटख चंचला-सी
काला लिबास, शर्पकन्या-सी
वो सितारों जैसे कुछ 
जगमगा - सा गए!

मरघट

हम मिले-जुले
एक मरघट पर,
हम बात किए 
कुछ मरघट पर,
माँ गंगा की आरती हुई 
हम पढ़ें मंत्र
उस मरघट पर,

वो सब छोड़ 
किनारे बैठे थे,
हम पाने
दरिया आए थे,
कुछ शाम की
रूंधी भाषा में,
हम बातें करते चले गए,
हम चले परस्पर मरघट से!


जो नहीं है!

वो जो नहीं है
जिससे बातें नहीं बनी
जिससे जाती नहीं मिली
जो टूटे चप्पल की तरह रही
जो फिसली और पर पाँव धरी
जिसको समझा मैं नहीं सका
जो मेरी समझ के बाहर थी
उसकी कमी-सी कैसी है?
जो मिली हुई है बातों से
जो जुड़ी हुई है हरकतों से
उसके अंदर वो झलक रही
पर उनसे बेहतर वो कहाँ लगी?

जल्दी

अभी समय हुआ तो नहीं है
अभी किसी ने टोका तो नहीं है,
अभी कल ही तो आसानी से
पार हो गया था,
कल भी कहाँ कोई 
माथे पर चढ़ गया था?

कल जैसा आज होगा
तो क्या हो जाएगा?
क्या होगा जो अलग होगा?
कल की देरी, 
आज की जल्द को 
पोषित न कर दे?

देखूँ और दिखाऊँ

मैं कुछ देखूँ अपने भीतर  कुछ अपना अंतर दिखाऊँ, कुछ देखूँ दुनियाभर के रंग कुछ मिलकर नाँचु-गाऊँ  कुछ और के दिल मे झाँकू कुछ उनके दर्द भुलाऊँ, ...