Friday, 31 January 2025

प्यार और इंकार

साथ नहीं, साथ-साथ 
मेरी समस्या, मेरा प्यार,
उनपर कुछ अधिकार 
कुछ उनपर विश्वास, 
कुछ रुका हुआ फैसला 
कुछ अपनेपन की फांस, 
यह मिलने की जिद्द
यह रहने की उम्मीद, 
उसका कौन सहारा
मेरा भ्रम है सारा
यह संसार का छोर
यह प्यार मेरा चितचोर!

जात

हमारी एक जात
हमारा काम साथ,
हमारी एक नजर
हमारी एक पहचान, 
हमारी एक चोरी
हमारी एक हंसी
हमारी एक बात
हमारा एक मज़ाक, 
एक दर्द, एक मरहम
एक सर्द, एक गर्म
एक नमक, एक अचार 
एक खून, एक सांस, 
एक खारिज,  एक खाज
एक वचन, एक आवाज 
एक पूजा, एक नमाज, 
एक घर, एक समाज
एक खुशी, एक उल्लास, 
एक राम, एक विश्वास!

Wednesday, 15 January 2025

भ्रष्टाचार

पहले चाय लिए 
फिर थोड़ा-बहुत नाश्ता,
फिर थोड़ी फिरकी
फिर थोड़ा आराम,

थोड़ा-सा काम
और गपशप
थोड़ी गहरी नींद
रात्रिभोज और देर शयन, 
वासनापूर्ण लोचन,
कुछ ओढ़े तंग 
चमकी बसन, 
बदला मेरा
तन और मन
आया मेरा करप्शन!


उसका पैसा

उसका पैसा पड़ा
जमीं पर,
उसकी भूख हद की
मरोड़ पर,
ऊंची आवाज 
और खिजलाहट 
यह समाज की 
बेरुखी की
झुंझलाहट, 
सोमरस मे बिसरे
कायदे के बोल,
ये डर दुकानदार का
ये ग्राहकों के धौंस, 
एक दूसरे के सन्मुख 
कृष्ण के दो ठौर!


Monday, 13 January 2025

सर्वव्यापी

मित्रों के साथ नहीं 
थोड़ी बातों की लगे दुकान,
कुछ जीवन की हो गपशप 
कुछ आस-पड़ोस का ज्ञान, 
कोई सड़क के लंबे रस्ते 
जो रात चले सुनसान,

सेक्रेटरी के साथ नहीं 
थोड़ी बहुत शिकायत 
थोड़ा मिलकर काम, 
थोड़ी चिट्ठी-पत्रि
थोड़ा मान-सम्मान, 
थोड़ी साफ़-सफ़ाई
थोड़ी चली जुबान, 

परिवार के साथ नहीं 
थोड़ा खाना पीना 
थोड़ा tv देखना 
थोड़ा सैर-सपाटा
कुछ लाए चीनी-आंटा
कुछ छत के ऊपर छत
कुछ टूटे-जुड़े मकान, 

समाज के साथ नहीं
कुछ होते मिलन-समारोह,
कुछ 

कुरुक्षेत्र का आम सिपाही

मैं कुरुक्षेत्र का आम सिपाही 
मुझे ग्यान की क्या दरकार 
क्या है सत्य मेरे लिए 
क्या है भावना,
मेरी क्या संदेह 
कौन मेरा मित्र 
कौन सहोदर, 
क्या पाप? कैसा पुण्य 
मेरे युधिष्ठिर और 
मेरे दुर्योधन मैं खुद!

मेरा छोटा राज्य 
मेरे घर के भीतर, 
मेरा एक परिवार 
सब जीने को कातर, 
एक ही संकल्प 
एक ही दरकार, 
हमारे जीने की कवायद 
हमारा मात्र संघर्ष, 
हमने जीवन से मिलकर 
अपनी कसम निभाई...

जिंदगी हमारी जुआ 
गरीबी शकुनी-सी आतुर, 
सोम- क्षुधा के मध्य 
दाव लगता है सबकुछ, 
आदेश का पालन बुद्धि में 
जीने भर दाने मुट्ठी में, 
हमने आदर्शों की 
चूल्हे में चिता जलाई!

Friday, 10 January 2025

माँ का संकल्प

मुझको रखे महफ़ूज़ 
दुनिया से बचाकर, 
मेरे लिए सब बला 
सब को भगाकर,
झूठ को भी जानकर सच 
झूठ को फैलाकर घर-भर 
रोती रही रात भर 
रही रंज में इस कदर, 
कर संकल्प माँ कर संकल्प,

बड़ी-बड़ी नज़र 
यह स्वीकार नहीं की मैं 
दूर होऊं कुछ पल, 
सब राजपाठ 
आया जो कहीं से 
जाए नहीं किधर, 
यह कहर-कहर 
रोके मुझे घर नज़रबंद,
ना मिल किसी और से 
ना बात हो उधर, 
राम से लखन 
दूर करती है हर पहर!

शोर-गुल

थोड़ा शोर-गुल होने दो 
थोड़ा घूम आने दो, 
जो है बहुत ही बहुत खुश 
जिसकी है कदम में
बहुत चुल,
हमारे डाल की बुलबुल 
को खुलकर गुनगुनाने दो,

जो शाम शाखों पर 
नशेमन में दुबक जाते, 
जो रात काजल की तरह 
पलकों पर सजा लेते, 
उनको हुए महफ़ूज़ 
थोड़ा मशहूर होने दो, 

जो मिलाकर हाथ 
हममें मिलके बैठे हैं,
आज जो औरों की बाबत 
महफ़िल में बैठे हैं, 
उनसे हमारी साख में 
कुछ भूल होने दो!

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...