थोड़ा घूम आने दो,
जो है बहुत ही बहुत खुश
जिसकी है कदम में
बहुत चुल,
हमारे डाल की बुलबुल
को खुलकर गुनगुनाने दो,
जो शाम शाखों पर
नशेमन में दुबक जाते,
जो रात काजल की तरह
पलकों पर सजा लेते,
उनको हुए महफ़ूज़
थोड़ा मशहूर होने दो,
जो मिलाकर हाथ
हममें मिलके बैठे हैं,
आज जो औरों की बाबत
महफ़िल में बैठे हैं,
उनसे हमारी साख में
कुछ भूल होने दो!
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