मुझे ग्यान की क्या दरकार 
क्या है सत्य मेरे लिए 
क्या है भावना,
मेरी क्या संदेह 
कौन मेरा मित्र 
कौन सहोदर, 
क्या पाप? कैसा पुण्य 
मेरे युधिष्ठिर और 
मेरे दुर्योधन मैं खुद!
मेरा छोटा राज्य 
मेरे घर के भीतर, 
मेरा एक परिवार 
सब जीने को कातर, 
एक ही संकल्प 
एक ही दरकार, 
हमारे जीने की कवायद 
हमारा मात्र संघर्ष, 
हमने जीवन से मिलकर 
अपनी कसम निभाई...
जिंदगी हमारी जुआ 
गरीबी शकुनी-सी आतुर, 
सोम- क्षुधा के मध्य 
दाव लगता है सबकुछ, 
आदेश का पालन बुद्धि में 
जीने भर दाने मुट्ठी में, 
हमने आदर्शों की 
चूल्हे में चिता जलाई!
 
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