दुनिया से बचाकर,
मेरे लिए सब बला
सब को भगाकर,
झूठ को भी जानकर सच
झूठ को फैलाकर घर-भर
रोती रही रात भर
रही रंज में इस कदर,
कर संकल्प माँ कर संकल्प,
बड़ी-बड़ी नज़र
यह स्वीकार नहीं की मैं
दूर होऊं कुछ पल,
सब राजपाठ
आया जो कहीं से
जाए नहीं किधर,
यह कहर-कहर
रोके मुझे घर नज़रबंद,
ना मिल किसी और से
ना बात हो उधर,
राम से लखन
दूर करती है हर पहर!
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