Tuesday, 25 May 2021

रोना Test

खुश कर देती उनको
उनका कहकर swag,
वह जब बातें करते 
तुम तब करती observe,
तुम अपनी बातों से 
लेती mental swab, 
वो क्या कहते, क्या सुनते, 
और क्या सोचते 
तुम परखती,
सबको ही करती judge 
बिना जाने पूरा सच,
बनाती negative या 
फिर positive 
तुम घुस के अपनी lab.

Report तुम देती 
प्रियांका दी को जाकर,
सारे लक्षण सक्षर
प्रियांका दी को समझाकर,
गुस्से मे लाल होकर 
तुम बताती फिर व्यवहार।

और इलाज मे करती 
emotional अत्याचार,
रोगी ही न जाने 
diagnose कब हुआ था?
दवा कब चली थी?
इलाज कब हुआ था? 
वह बैठा guilt मे
अपना धीरज खोता,

राम जाने कौन फिर 
भला negative होता 
कौन positive होता? 

कौन पास करता,
कौन फेल होता 
ये रोना test?

चूहा

चूहा कूतर रहा था,
कपड़ा, सोफा,
रस्सी,रोटी।
चूहा कूतर रहा है,
अब अपनी 
पूंछ की बोटी।

चूहा तो चूहा है, 
इंसान तो नही,
इंसान तो इंसान है,
चूहा तो नही।

Monday, 24 May 2021

आज़ाद

कुछ तो हम आजाद हैं, 
कुछ और किनारे बाकी हैं।

कुछ थालियों में खा चुके,
कुछ बैठ चुके छांवो में,
कुछ घरों में रह चुके 
कुछ दिल में रहना बाकी है।

हम बातें करते बिस्तर पर, 
हम बातें करते राम पर, 
हम साथ देखते जाति को, 
हम हाथ बटाते बच्चों पर,

उन पढ़ने वाली बातों को
अब मन में गढ़ना बाकी है।

Sunday, 23 May 2021

रात

रात भर तेरी याद
मुझको आती रही।

तुम जाती रही 
रात भर दूर मुझसे,
मुझे शिकवे सुनाती रही 
रात भर,
तुमसे चुप भी रहा और मनाता रहा,
तुमको खुद भी मुनासिब सुनाता रहा,
तुम न मानी मगर
मै बहुत ही समझाता रहा।

रात भर दिन की बात,
उभरती रही, 
रात भर दरवाजे तक बढ़ती रही 
रात भर, दिन की रोशनी ढूंढती, 
तुम उजाले से बिस्तर हटाती रही, 
मै न सोया, तुम न सोई, 
तुम मुझे रात भर यूं जगाती रही। 

मैने करवट ली, 
तो तुम नहीं थी बगल मे, 
तुम बगल में खड़ी बस मुझे 
हिलाती रही, डूलाती रही,
मै सोया तो था तुम्हे पाने के लिए 
तुम यही जानकर मुझे तिलमिलाती रही,
मेरे जीवन से जाना भर 
मुनासिब न था,
तुम सपनों से भी खुद को चुराती रही। 

मै जागा था जब रुखसत के लिए, 
जब समेटे थे कपड़े उस घर के लिए,
पूछा मैने कि घर है यह किसके लिए?
तुम तवज्जो लिए महटियाती रही। 

रोने लगी जब खुदा के लिए, 
तुम दामन को मेरे भिगाती रही, 
जो ना कहा, तुम गुमां मे रही, 
आंसू से मुझको बताती रही, 
राम को रात भर तुम जगाती रही,

रात भर तुम भी रोती रही,
रात भर तुम मुझे भी रूलाती रही।

भ्रम

मै भ्रम पालता हूं,
उसको देता विचार,
उसको देता समय, 
उसको रखता साथ-साथ 
उसमे रहता हर समय।

मै भ्रम की चिता जलाकर 
उसमे जलता दिन भर,
आत्मदाह मै करता,
पल-पल, हर पल।

भ्रम का धुँआ उठता,
मै गुर्राता, खीझ उठता,
अकुलाता,
मै भ्रम मे छुपकर 
आत्मा भुलाता,
मै भ्रम की चाहत मे
हीरा जन्म गंवाता।

मृग-मरीचिका मे 
चलते जाता, 
भ्रम मे रहता 
भ्रम फैलाता

मै भ्रम पालता।

Saturday, 22 May 2021

Characterless

तुम बता-बताकर 
बना-बनाकर,
मुंह को सबसे छुपा-छुपाकर 
रहती खुद के घेरे मे ही,
दोस्त मित्र को भगा-भगाकर।

गाली देकर डरा-डराकर,
कुछ लोगों को दबा-दबाकर,
लिपट-लिपटकर
रुला-रुलाकर।

फोन उठाकर
गढ़ती कहानियां,
टेसू अपने बहा-बहाकर 
डॉक्टर को भी,
सत्य को भी,
सबको गंदा दिखा-दिखाकर,
कीचड़ उनपर मसल-मसलकर,
करती उनका चरित्र तुम धूमिल,
अपना character,
गिरा-गिराकर।

राम-राम का मंतर जपती,
सीता सबकी चुरा-चुराकर।

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...