कुछ भूल चुकी थी सब 
कुछ बचे हुए हो भुलाने, 
अपना रुतबा और शिकायत 
हमसे कहकर दुहराने, 
इधर से उधर 
और फिर कहीं और,
वो बातें करती थी 
बिना सर और पैर, 
जब याद आया बच्चा 
कह दी उसकी बात, 
और दिवंगत पति 
उनकी बड़ी औकात,
फिर नन्हा-सा पोता
और बहु की बात, 
उनके रोज़ के झंझट
और उठाते हाथ, 
दादी आती थी बताने 
धूप और बरसात
दादी का कंकाल 
बिस्तर से छोड़े पिंड, 
लाठी की टेक 
चले बाँधकर ज़िल्द, 
हरिया-झरिया का बंगाल 
छोटे कमरे का ओट,
और बहन-भाई का
मन मंदिर का खोट, 
सबको मिलती मुक्ति 
दादी का बैठा दर्द, 
दादी का मैं सबरी
दादी मेरी राम!🙏🏽😇
 
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