देह के उल्लास में,
विनोद कर लिया
या किया था रंज,
और अलग-थलग 
जब हुआ बेरंग, 
छा गया भ्रमजाल
हो गया मैं तंग,
जो रचे किरदार 
जो दिया संवाद, 
आ गया बनकर
पूर्ण रुप विवाद, 
बना शब्द बाण
कर दिया प्रहार
भंग करके रंग 
छेड़कर विषाद,
अपने भीतर अनंत
गूंज उठा नाद,
गगनचुंबी गर्जन
अनंतिम हाहाकार, 
विप्लव विशाल 
प्रचंड पारावार, 
अट्टहास कठोर
आत्म पर आघात!
 
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