भय का सृजन हो,
ना कांपते अधर
न ग्लानि का असर,
मुस्कान हो और प्रार्थना
स्थिर खड़ी हो याचना,
शब्द शील बंध हों
धैर्य की हो धारणा,
यह बल हो प्रतिबिंब
जिसमे देखे स्वयं को वीर,
इसमे बहुत चंचल
हनुमान कब गंभीर?
राम का हो नाम
राम की हो आश,
राम के अश्रु
राम का ही बल!
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