क्यूँ अंधेरा कर रहे हो तुम?
चिरागों की चमक को
क्यूँ सवेरा कह रहे हो तुम?
हमारे खादी पहनने से
'बापू' साँस लेते हैं
हमारे साँस लेने पर
बखेड़ा कर रहे हो तुम?
मैं कुछ देखूँ अपने भीतर कुछ अपना अंतर दिखाऊँ, कुछ देखूँ दुनियाभर के रंग कुछ मिलकर नाँचु-गाऊँ कुछ और के दिल मे झाँकू कुछ उनके दर्द भुलाऊँ, ...