Wednesday, 31 July 2024

कीचड़

आसमाँ के भाव 
और धरती के शब्द,
बादल का उन्माद 
और प्रकृति का अंक,
पवन का आवेग 
और अग्नि का भष्म,
सावन की अल्हड़ता 
बिखरा ग्रीष्म का वैराग्य,
बारिश से लयबद्ध 
खिला प्रेम का राग,

थोड़ा जल, थोड़ी मिट्टी,
कोई बीज़, कुछ रेती,
शरीर के रंग-सा
बेतरतीब बेढंग-सा,

आश्रय की छांव 
कोमलता के राम,
संचित सृजन का मर्म
जीवन पल्लव का धाम,
मृत से चैतन्य का सन्दर्भ 
प्रकृति का गर्भ!

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