मेरी एक कहानी,
तुम्हारी थोड़ी कच्ची
मेरी थोड़ी पक्की,
मेरी चली बनारस
तुम्हारी मुंगेर वाली,
मेरी लिखी किताबें
तुम्हारी कही जुबानी,
सुनी- सुनाई बात
जुड़ी हुई कुछ बाद,
कुछ भाव लगातार सींचे
कुछ बने और भावार्थ,
उसकी एक कहानी
जिससे मिले नहीं,
उसकी एक कहानी
जिसको सुना नहीं,
कुछ लोगों की बुद्धि
कुछ सबरी का विश्वास,
कुछ दिल के घर मे बैठे
कुछ बिकते घाटों-घाट,
यही बनी हुई कहानी
यह बुनी हुई कहानी,
नए डाल पर आए
ये सदियों पुरानी बात,
सबके रंग चुराती
यह सबके रूह का पानी!
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