बापू का बड़ा-सा चरखा,
बापू के घूमते चक् से
निकलते विचारों के
अनवरत धागे,
मानव समाज के पुलिन्दे से
बनते नए सूत्र
कुछ टूटते मध्य
कुछ गढ़ते अंबर गूथ,
घर गृहस्थ की
बड़ी-बड़ी खुली साखा,
हर किताब- अख़बार मे
विवेचित परिभाषा,
मूल से संदर्भ तक
रौशन उनकी जिज्ञासा,
स्कूल की दीवार
और रेल की टिकट,
फिल्मों की अंतरात्मा
काॅन्ग्रेस का जीवाश्म,
बापू पर आधारित
बापू का ही ढंग,
विशाल विश्वरूपी
यह बापू का संघ!
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