कस्बे में आ गए,
खुले आकाश से नजरे हटा
कमरे मे आ गए,
टाई लगी, बक्कल लगा
और ओढ़ काला सूट,
हम जंगलों की छोड़
इक मलबे मे आ गए,
माँ-बाप और परिधान अपने
लग रहे हैं लीच,
सूरज उगा पश्चिम से
हम जुमले मे आ गए,
दूर होकर चल रहे हैं
परछाईयों से आज,
हम शरीफों के बड़े
कुन्बे मे आ गए,
साड़ी वाले जिनको
काबिल नहीं लगते,
चुनाव को राजा
सुधानंदन पे आ गए,
जमाई राजा संसद बचाने
लंदन में आ गए,
धज्जियाँ उड़ने लगी
हमारे साँस लेने से,
लकीरों के पल्लेदार
बंधन में आ गए,
औरंगजेब सो गए
औरंगाबाद मे,
छत्रपति महाराज
महज सपने मे आ गए,
और शाम आ जाएगी
विक्टोरियन साम्राज्य मे भी,
लाठी- लंगोटी वाले
जब अपने पे आ गए!
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