Wednesday 31 July 2024

चाकरी

चाकरी को गांव से 
कस्बे में आ गए,
खुले आकाश से नजरे हटा
कमरे मे आ गए,
टाई लगी, बक्कल लगा
और ओढ़ काला सूट,
हम जंगलों की छोड़
इक मलबे मे आ गए,
माँ-बाप और परिधान अपने
लग रहे हैं लीच,
सूरज उगा पश्चिम से
हम जुमले मे आ गए,
दूर होकर चल रहे हैं
परछाईयों से आज,
हम शरीफों के बड़े
कुन्बे मे आ गए,

साड़ी वाले जिनको 
काबिल नहीं लगते,
चुनाव को राजा
सुधानंदन पे आ गए,
जमाई राजा संसद बचाने
लंदन में आ गए,
धज्जियाँ उड़ने लगी 
हमारे साँस लेने से,
लकीरों के पल्लेदार 
बंधन में आ गए,
औरंगजेब सो गए 
औरंगाबाद मे,
छत्रपति महाराज 
महज सपने मे आ गए,
और शाम आ जाएगी
विक्टोरियन साम्राज्य मे भी,
लाठी- लंगोटी वाले 
जब अपने पे आ गए!

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