Thursday, 26 September 2024

वचन

अगला शब्द
अगली फिल्म 
अगली चाय
अगले लोग
अगली किताब
अगली ट्रेन 
अगली बोगी
अगला ध्यान
अगला ज्ञान 
अगला मिलन
अगली बिहार
अगला समाज,
अगली कहानी
अगले कृष्ण 
अगले राम
अगला जन्म
अगला काम!

मरने वाला मेल

हम शब्दों के शस्त्र से
चीरे हुए हैं काल मे,
हम रास्तों पर मिल रहे हैं
दूर से बेतार में,
हम जानने वाले हैं 
हर नज़र की पहचान में,
हम देखने वाले हैं
अपने पीठ को हर हाल में,
हमारे दोस्त हैं दुश्मन 
हमारा संग आसमान मे,
हम चुप हुए है फेर नजरें 
मिल रहे संसार मे,
हम साथ चलने के लिए हैं
मौत की रफ्तार मे!


Monday, 16 September 2024

जो है नही

ऐसी चमक, ऐसी खनक 
जो है नही,
देखने से ढ़ल जाती है
सुनी हुई धुन सादी है,

मनोहर गढ़ी, भेरी कही
योगी की तंद्रा,
भोगी की रंभा 
कवि की नजर मे
सुमन-सा सुवर्ण,
रसिक की जुबान 
की टपकती शहद,

आंखों की हसरत
सदा की मुहब्बत
होने का तसव्वुर 
ये बयार-ए-इबादत
जो होगी नही!






मित्र

कितनों से मिला
जानकर चुप,
कितनों से मिला
पहचान मे गुप्त,
कुछ और अजीब 
कुछ और अनोखा
मेरे मन मे मेरा मित्र,

और ढूंढता, 
और मे पाता
कहां- कहां है मेरा मित्र?

घर

घर से निकलने का 
बड़ा लगा है,
बना लिया है मैंने 
अपना यहां पर घर,
यहां के लोग 
यहां के मंजर
लगने लगे कितने सुंदर,

यहां बसा है मेरा दोस्त 
यहां रुका मेरा परिवार,
यहीं पर हैं भगवान मेरे 
यहीं मिला मुझको वरदान,

यहां नजदीक बड़ा बाजार 
यहां गाड़ी और घोड़े-सवार,
यहीं कॉलोनी में साथ हैं सब 
यहीं मंदिर में भजन व्यावहार,
यहीं पर ओम, यहीं पर हवन 
यहीं पर रात, यहीं पर शयन,

यहां की भाषा, यहां पर गीत 
यहां पर रंजन, यहां पर रीत,
यहां पर खाना यहां पर रोटी 
यहां पर चैन, यहां पर ज्योति,

कहां बनेगा ऐसा घर 
कहां मिलेंगे ऐसे लोग,
कौन बनाएगा फिर मिलकर 
घर से परे और एक घर?


Wednesday, 11 September 2024

चक्र

कल फिर मन 
कल जैसा होगा
कल ज्ञान 
खत्म हो जाएगा,
आज का ज्ञान 
कल मुँह चढ़ायेगा
आज का अज्ञान 
कल हाथ पकड़कर 
अंधकार की कालिख से 
मुँह धुलाएगा,
कल त्याग 
मोह बन जाएगा,
कल वासना सुख
और सुख 
वासना बनी होगी,
कल मुस्कान मुसीबत 
और मुसीबत 
मुस्कान की जगह लेकर
हावी होगी,
कल राम 
दूर से ही सही
अच्छे लगेंगे,
बुलाकर मुस्कुराएंगे
रुलाएंगे और 
रास्ता दिखाएंगे
राम फिर जन्म लेंगे
राम वन जाएंगे,
और फिर से 
अयोध्या मे दिवाली होगी!




Tuesday, 10 September 2024

नया आदमी

आया है कहीं से 
नया आदमी,
खेलता है, पढ़ता है
बातें सबसे कर्ता है,
हमारे समाज का 
फला आदमी,

खाता नहीं है 
ठहरता नहीं है,
कुछ भी कह रहा है 
कुछ कहता नहीं है,
लगता है सबको 
भला आदमी,

खेल मे, कूद मे
गीत मे, नृत्य मे,
कर्म मे, काण्ड मे
ग्राम मे, प्रांत मे
हमारा हमराह बनकर
चला आदमी,

हमारे ही देश का
एक पला आदमी!

परवाह

न तुमने रोकने की कोशिश की 
न मैंने मुड़ कर देखा,
न तुमने कुछ और बात की 
न मैंने जुड़ कर देखा,

न तुमने हाथ मिलाया 
न मैंने हाथ बढ़ाया,
तुम्हे मेरी परवाह थी
और मुझे मेरी!

कालीदास की पत्नी

तुम्हारे प्रश्न का उत्तर 
तुम्हारे मन का आपा,
तुम्हारी देश के ढंग 
मेरे छोटे ढोंग,

तुम्हारे लम्बे वक्तव्य 
मेरी हाँ की धुन,
तुम्हारी बड़ी शिकायत 
मेरी बातें सुन्न,

परमार्थ- समर्थ के प्रश्न 
लोक विवेक के मंत्र,
पाई-पाई की बचत
लमहे- लम्हे का यत्न,

कौन, किसका, किसको?
ऐसा-वैसा उनको,
महिषासुर, रावण भोगी
धोती-कुर्ता योगी,

समय-समय का बंध
जगह-जगह के लोग,
आने-जाने के मतलब 
क्या जानेंगे लोग,

देखने की मर्यादा 
पूछने की अभिलाषा,
कहने-सुनने का संदर्भ 
कार्यालय की परिभाषा,

सूर्य-चंद्र, अग्नि-जल
बुद्धि-बल, प्रमाण-छल,
ध्यान-राग, आज-कल
दशा-दिशा, भुजा-दल,

गदा-फूल, आद्र-धूल
विनय-हूल, शांत-चुलबुल,
खता-भूल, नाम-मूल
शहर-ग्राम, नम्र-शूल,

कला-सुकून, चला-कुल 
पंक-कमल, धरा-अतल,
प्रभा-दर्श, आदि-शीर्ष
अंत-मुक्त, सत्य- हर्ष,

दर्द-कीर्ति, राम-भक्ति 
कृष्ण-रास, बुद्ध- शक्ति,
व्यथा-व्यर्थ, माया-अर्थ
प्रेम-उमंग, कलह- संग,

अदा-शृंगार, लाज-अलंकार
दर्पण- सत्य, मोह- कृत्य 
बंध-तृप्ति, रास- भक्ति,
मेल-मगन, जाप- भजन,

खुदा-निराकार, अदृश्य-साकार
जंग-सुलह, क्रोध- हृदय,
प्रलय-नया, प्राणी- दया
सिन्धु-अथाह, बिन्दू- राह,

गगन-विशाल, क्रिड़ा-भूचाल
लता- लगन, क्षुधा-अगन,
आप- गर्व, विघ्न- अथर्व
ज्ञान-सर्व, लोक-पर्व,

सवाल-जवाब, हिसाब-किताब 
अलग-थलग, संग-संग,
आमोद-प्रमोद, कथा-बिनोद 
हंसी-मजाक, प्रेम-प्रसंग! 








Sunday, 8 September 2024

नटखट

कहना है कुछ 
कुछ और कहती हो,
मुँहजोरी कर रही
कहीं साथ कहती हो,
शब्दों के खेल मे
खेल रही शब्द-शब्द,
आँख खोल देखती हो
बंद आँख की शहद,
चुरा रही नजर 
चुरा रही हृदय 
तुम मुस्कुरा के लांघ देती
मेरे सब्र की शरहद,
खटखट-खटपट
बातों की झपट- लपट,
तुम बना रही मुझे
अपनी तरह नटखट!



ତୋଷାଳୀ

अतृप्त नयन के 
अंजन को तुम,
तुम माया युक्त
दीप्ति अगन,

प्यासी ग्रीवा की 
व्याकुलता को 
अधरों से देती 
अमृ-वचन,

हिमाद्री मलय की 
यज्ञ-भूमि में 
रजनीगंध की 
तीव्र चुभन,

तप्त धारा के 
शोणित को,
स्थिर करने की 
सौम्य छुअन,

राम श्रवण के 
त्रेता की तुम,
मोहन-रूपा
मुरलीधरन,

क्रंदन को 
आतुर जो मन,
आंचल से
सोखती अश्रुजल,
 पीतल की 
सर्वसुलभ कंचन,
अणस-कन्या, मोहिनी-जन्य 
ओस-दूब की मधुर मिलन,
माटी-तृण की सेतु चरण,
तुम हरियाली-सी अर्धनग्न,
वर्तिका-किरण की आलिंगन,
शृंगार की शिखर चिरयौवन
स्थिर-प्रज्ञ और अल्हड़पन,
पोषित करती मद की प्याली 
भोली-भाली तोशाली!


सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...