Sunday, 8 September 2024

नटखट

कहना है कुछ 
कुछ और कहती हो,
मुँहजोरी कर रही
कहीं साथ कहती हो,
शब्दों के खेल मे
खेल रही शब्द-शब्द,
आँख खोल देखती हो
बंद आँख की शहद,
चुरा रही नजर 
चुरा रही हृदय 
तुम मुस्कुरा के लांघ देती
मेरे सब्र की शरहद,
खटखट-खटपट
बातों की झपट- लपट,
तुम बना रही मुझे
अपनी तरह नटखट!



No comments:

Post a Comment

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...