कुछ और कहती हो,
मुँहजोरी कर रही
कहीं साथ कहती हो,
शब्दों के खेल मे
खेल रही शब्द-शब्द,
आँख खोल देखती हो
बंद आँख की शहद,
चुरा रही नजर
चुरा रही हृदय
तुम मुस्कुरा के लांघ देती
मेरे सब्र की शरहद,
खटखट-खटपट
बातों की झपट- लपट,
तुम बना रही मुझे
अपनी तरह नटखट!
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