Sunday, 8 September 2024

ତୋଷାଳୀ

अतृप्त नयन के 
अंजन को तुम,
तुम माया युक्त
दीप्ति अगन,

प्यासी ग्रीवा की 
व्याकुलता को 
अधरों से देती 
अमृ-वचन,

हिमाद्री मलय की 
यज्ञ-भूमि में 
रजनीगंध की 
तीव्र चुभन,

तप्त धारा के 
शोणित को,
स्थिर करने की 
सौम्य छुअन,

राम श्रवण के 
त्रेता की तुम,
मोहन-रूपा
मुरलीधरन,

क्रंदन को 
आतुर जो मन,
आंचल से
सोखती अश्रुजल,
 पीतल की 
सर्वसुलभ कंचन,
अणस-कन्या, मोहिनी-जन्य 
ओस-दूब की मधुर मिलन,
माटी-तृण की सेतु चरण,
तुम हरियाली-सी अर्धनग्न,
वर्तिका-किरण की आलिंगन,
शृंगार की शिखर चिरयौवन
स्थिर-प्रज्ञ और अल्हड़पन,
पोषित करती मद की प्याली 
भोली-भाली तोशाली!


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