Tuesday, 26 August 2025

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं 
खुद से जिम्मेवारी, 
ये मानवता, ये हुजूम,
ये देश, ये दफ्तर 
ये खानदान, ये शहर,
ये सफाई,  कुछ कमाई 
एडमिशन और पढ़ाई, 
आज की क्लास 
कल सुबह का ऑडिट, 
उनका टिकट
इनका इतिहास!



ये

ये क्या है?
जिसका नाम नहीं है 
बातों में है और 
ज़िक्र नहीं है,
जो श्रोत है 
जीवनमृत का,
आकर्षण है
व्यभिचार का,

जो श्रद्धा है
मातृत्व का,
सीमा है
व्यक्तित्व का,
दायित्व है
संस्कार का,
और कृतित्व है
कलाकार का!

Monday, 4 August 2025

हुनर

दो हाथ से 
दो गज का 
माप ले लिया,
दो नजर मिलाकर 
दाम का 
सवाल कर लिया,
जीने के लिए 
जुटा लिया, 
अपने हुनर के 
जोर से,
दो रोटी, एक छत
और एक मुस्कान, 

सुबह चढ़कर ट्रेन मे
बांट दिया सामान, 
फैला दी एक चादर 
सुना दिया एक गीत, 
कुछ जुबान चला दी 
झाल खिलाकर, 
राम नाम से लुभाया 
हृदय गांठ खोलकर, 

कुछ उठा लिया बोझ 
जेब से निकाल, 
कर दिया 
माया से हल्का,
किसी के आंसुओं में 
किसी का रबाब छलका,
किसी से छेड़खानी की
किसी का नकाब उतरा, 
कोई बन गया लाचार
बोझ बताकर, 
लूट लिया किसीको 
कुछ और दिखाकर,
जीवन जीकर पा लिया 
जीने का हुनर!


सुबह

तुम उठी और 
मेरी सुबह हुई, 
तुम चली और 
फिर धरा चली, 
तुम बोली तो 
हवा ये बातें की, 
तुम रुकी तो 
हमने दृश्य दिखे, 
तुम आयी तो 
राम हृदय मे आ बैठे!

Friday, 18 July 2025

कितना

कहो की 
हमसे प्यार कितना है?

की नींद पूरी कब हुई थी 
याद नहीं है, 
मेरे दोस्त जो थे वो 
अब साथ नहीं हैं, 
चित्रकूट की नपाई 
का टेप खो गया है,
नेटवर्क मेरा 
रोमिंग हो गया है,
साइकिल मेरी 
हाथ आती नहीं है,
बांसुरी भी अब
सुर मिलाती नहीं है,
बनारस के दोस्त 
करेले पलग्गी, 
खियावेके पान 
पियावेके लग्घी,
चार मास के एक
लगन जितना है!

गाँधीजी अब नोट पर 
ही नजर आते हैं, 
मेरे योग वाले साथी 
मुझे घर मिलके जाते हैं, 
मोहल्ले की सफ़ाई का
अभियान है रुका हुआ,
बड़े साहब की गश्त
बिना मेरे बढ़ा हुआ,
मेरे कमरे के बाहर 
यह शहर जितना है!

माई से बात भइल
हफ्ते ले पहले,
डबल ड्यूटी वाला
भइआ कहेले,
भउजी के खबर का
मुअलिन की बचलिन, 
सालू के फोनवा 
उठइले महिन्ना, 
चच्चा के बिटिआ
लिखत बाड़ि पन्ना,
दिदिया का जानी 
घरे बा की नईहर, 
मउसी घोरावतथिन
मेहरिया के लतिहर, 
अपनों मे आया ये
जहर जितना है!

ऑफिस के फाइल मे
पेनड्राइव रखा है,
बाॅस के मोबाइल मे
मेरा नंबर लगा है,
ऑडिट के बाद
खोजे है टीम,
सो जाते लगाकर
पैग औ सिटकिन, 
लिखते-लिखावत 
लिखा जा ता कुछ,
बीचे मे फोटो से
मंगावत है पूछ,
नौकरी मे हमारी
कलम जितना है!

मेरे राम का नाम 
सुबह ना ही शाम,
तुम्हारी सांसों से
होता प्राणायाम, 
जागथि पहिले 
पहुँचथि लेट,
सड़ जाता फल
खाली बा पेट,
देखिए के तोके 
खोलेथि आंख, 
सबेरे रे चार दाईं
सूनत्थि डांट, 
सिया के लिए
बस हिरन जितना है,
प्रिया के लिए 
ये पवन जितना है!









Friday, 27 June 2025

सुधार

तुम सुधर न जाना 
बातें सुनकर जमाने की, 

कहीं धूप में जलकर 
सुबह से नजर मत चुराना, 
ठंड से डरकर 
नदी से पाँव मत हटाना, 
कभी लू लगने पर 
हवा से गुफ़्तगू न भुलाना, 
किसी की नाक बहने पर 
घर पर मत बुलाना,

कोई कह दे अगर 
करेले की लड़ाई, 
तुम हंस लेना खुलकर 
करेले से न लड़ जाना, 
कोई नमस्ते कहे तो 
खुशी रहो कह देना, 
किसी को हाथ जोड़कर 
नहीं मुस्कुराना, 

तुम्हारे भक्त हो गए हैं 
गंगा के घाट और कुंड, 
सुबह आरती में तुम 
नहाकर न चली जाना, 
तुम्हारे तिलक पर 
सभी की नज़र है,
तुम अपनों की सुनकर 
भगवान को मात भूल जाना, 

तुम्हारे अन्नपूर्णा को 
तुम्हारा इन्तेज़ार है, 
कभी भीड़ से डरकर 
चुप न हो जाना,
किसीको पता नहीं 
तुम कोहिनूर हो, 
मेरा दामन छोड़कर 
कहीं मुकुट न जड़ जाना,
लोग जी रहे हैं 
तुम्हारा जीना देखकर, 
तुम उनकी सुनकर 
जीना न भूल जाना,

कोई कद कोई काठी 
वहाँ पहुँच नहीं सकती, 
कोई रंग-रूप की बात 
तुमसे पच नहीं सकती, 
तुम पैर ढंकने के लिए 
पाजामे मे न फंस जाना, 

'कुत्ता' कह दिया तो 
बड़ी बात बनी होगी, 
खाना साथ न खाया तो 
उनकी भूख मरी होगी, 
कभी बकरियों की चोरी 
पर हुआ हो घमासान, 
कोई भूत बनकर डर गया 
चाहे निकल जाए जान, 
तुम उनकी तंग-दिल बातों को 
कभी दिल पर न लगाना, 

तुम्हें देखकर कई 
अरमान उठते होंगे, 
तुम्हें बताकर कई 
बच्चे लड़ते होंगे, 
कोई तोड़ देगा टीवी 
अपनी नई घर की आज 
कोई प्रेम का अपने 
बतायेगा राज, 
तुम बच्चों की टोली में 
बड़ी मत हो जाना!

नजर

मुझे देखती हैं 
अब हर पहर, 
तुम्हारी ये 
झरोखों सी नजर,

पूछती हैं सवाल 
मांगती हैं जवाब,
मेरे होने की वजह 
मेरे जीने का ख्वाब,
ये कैसी कहानियों 
खुली है नहर,

इसमे है मेरा शहर 
दिन रात दोपहर,
मेरा ऑफिस 
मेरा घर, 
मेरे किचन का खाना 
मेरे दोस्तों का चिढ़ाना, 
मेरे बस की सीट 
मेरे ट्रेन की टिकट,
मेरा सोना 
मेरा जगाना, 
मेरा सूर्य नमस्कार
मेरा ऑडिट का उधार, 
मेरा खानदान 
मेरे मुहल्ले का पान, 
लावा और सुमन 
मेरा शबर, मेरा चैन 
मेरे करवटें वाली रैन,
मेरे गंगा की सुबह 
प्रयाग की शाम, 
मेरे अस्सी और राजघाट 
मेरा लस्सी मेरा चाट
मेरा सिनेमा का पर्दा 
मेरा 90 दिन का वादा,
मेरी सीता और चालीसा 
मेरे हनुमान और गीता, 
मेरा शक्तिमान 
और व्योमकेश
मेरा साधारण सा वेश, 
तुम्हारी शॉर्ट और 
सुबह का तिलक, 
हमारी रात भर की बात 
तुम्हारी शैतानी 
और शबाब, 
मेरे भारत के सब काम 
मेरे तुलसी मेरे राम,
मेरे चाक की कुम्हार 
मेरी सागर की लहर 
तुम्हारी नजर
ये हैं मेरी नज़र!

Friday, 20 June 2025

शिव-शक्ति

तुम शक्ति मैं शिव 
तुम ब्रह्मास्त्र मैं गांडीव, 
तुम गंगा का 
विस्तार प्रलयंकारी
मैं स्थित जटाधारी,
तुम चांद, मैं चंद्र-शेखर
तुम नदी, मैं सागर,

तुम गगन, मैं क्षितिज 
तुम अगन, मैं जल,
तुम खनन, मैं खनिज 
तुम पवन, मैं बल,
तुम खुदा , मैं हाफिज 
तुम धरा, मैं अचल,

तुम गुमान, मैं मुस्कान 
तुम आवेग, मैं समाधान,
तुम खुलापन, मैं विधान
तुम सलीका, मैं नादान, 
तुम किलकारी, मैं ध्यान 
तुम क्रोध, मैं शैतान

तुम प्रयास, मैं छल
तुम आज, तुम कल,
तुम रास्ता, मैं मंज़िल
तुम अवतार, मैं हासिल, 
तुम प्रिया, मैं नाम
तुम सिया, मैं राम!





 

Tuesday, 17 June 2025

नींद

मेरी नींद ले गई 
ख्वाबों की सच्चाई, 
मेरे साथ आ गई है 
जबसे मेरी परछाई, 
मेरे कहने से सुनने
के बीच फैली है,
एक लंबी दास्तान 
कई मिलों की तन्हाई, 

मेरी आने वाली सुबह 
मेरी ढ़लने वाली शाम, 
मेरे पढ़ने का तरीका 
मेरे चलते-फिरते काम, 
मेरी कुश की चटाई
मेरी दोपहर के ध्यान, 
कुछ धुले हुए कपड़े 
कुछ पर्दों का कलाम, 

तुम सभी में हो गई हो 
तुम सब समय पड़ी हो, 
मेरे लेकर सारे आराम 
तुम हो गई कोई काम, 
मेरी नींद भी नहीं 
और समय का नहीं ध्यान, 
तुम रात की नमाज 
और सुबह की इबादत, 
तुम शाम आरती 
तुम गोधूलि का राम!

Friday, 13 June 2025

जादूगर

तुम हो कोई जादूगर 
तुम्हारा होना है असर, 
तुमसे मिला नहीं, 
आया कभी पास भी नहीं, 
बस तुमने ली खबर 
मैं हो गया बेख़बर,

धीरज से हुआ मैं बेसबर
मदहोश हो गया हूं शाम-दोपहर, 
पम्मी का नाम था यूँ जहर 
तुमने छुकर कर दिया शहद,

ये नदी, ये झील 
ये सागर, ये लहर,
ये थे अपने मेरे 
हमसफर,  हमनफज,
ये शहर, ये सड़क 
ये मंदिर और नहर, 
ये सभी दोस्त थे
कल तक, हर पहर, 
अब चुप हो गए हैं
मुस्कुरा भर रहे हैं 
क्यूँ मुझे देखकर, 
बियाबाँ हो गए 
अब तुम्हारे बगैर,
पड़ी है तुम्हारी 
ये कैसी नजर,
क्या कर दिया है
कहो जादूगर?

मेरे राह सकुचाते उधर
छुने को चाहें तुम् चवर,
आस्मां निहारे तुम्हारी झलक,
गले से लटक कर
बगीचे की डाल,
पूछे तुम्हारा 
चिढ़ाकर के हाल,
खिंचाई करत हैं
आम की बउर, 
अटक जात है माथे
गजरा बनकर,
रस्ता रुकाके
चौराहे क पीपल,
कहत बाड़े बाबु
देखाता न आजकल?
सबपर तुम्हारी 
लगी है नज़र, 
कैसे ये करती हो
तुम जादूगर?

सबेरे उठाकर के
पूछ ता मम्मी,
आई मेहरिया 
भुला जईबा पम्मी,
मुझसे मेरी बाँसुरी 
भी अलगाई, 
फूंका जो मैंने 
हँसी-खिलखिलाई,
झाड़ू लगावत
कहत बानी भउजी,
तकिया के छोड़ा 
 लियावा जा सब्जी,
मामी तो कहती 
तनी मुस्किया के,
केसे बतियावत 
रहे रतिया के?
बहन कह रही
लगाकर के मुक्का,
मने मन छुहाड़ा
मने मन मुनक्का,
सबको तुम्हारा 
लगा इंतजार, 
जादूगर तुम्हारा है
कैसा कमाल?












Monday, 9 June 2025

दिहाड़ी

एक दिहाड़ी काटकर
मुझे घर बनाना है,
एक दिहाड़ी रोककर 
मुझे छत लगाना है,
एक दिहाड़ी खोदकर 
रोटी जुटानी है,
एक दिहाड़ी नापकर
चुल्हा जलाना है,
एक दिहाड़ी चलाकर
उनको दिखाऊं फिल्म, 
एक दिहाड़ी जलाकर 
बच्चों को दे दूं ईल्म, 
एक दिहाड़ी जोड़कर 
संघर्ष करना है,
एक दिहाड़ी तोड़कर 
कोई फार्म भरना है,
एक दिहाड़ी मोड़कर 
ठेके पे चलना है,
एक दिहाड़ी गाड़कर 
बालकनी मे मालिक के
मनीप्लांट उगता है,
एक दिहाड़ी जब्त कर,
वो पॉलिसी किनता है,
मैं काट लुंगा आज 
कुछ बच्चों की दिहाड़ी,
मैं उड़ा हूं आज 
लगा पंखों को पहाड़ी!



जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...